
भगवंत मान के बोलने के अंदाज की बेशक आलोचना होनी चाहिए। मगर इस कारण उनके सवालों को महत्त्वहीन नहीं माना जा सकता। यह प्रश्न उचित है कि मोदी की अनवरत विदेश यात्राओं से भारत को क्या हासिल होता है?
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जिस अंदाज में प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं का मज़ाक उड़ाया, वह अनुचित है। कॉमेडियन से सियासतदां बने मान ने मजाकिया अंदाज़ में कहा कि नरेंद्र मोदी पता नहीं किन-किन देशों में जाते हैं, मसलन “मैग्नेशिया”, “गैल्वेसिया”, “टार्वेसिया”। फिर वहां का सर्वोच्च सम्मान उन्हें दिया जाता है, जो भारतीय मीडिया में हेडलाइन्स बनता है। उन्होंने कहा कि इनमें से कई देशों की आबादी दस हजार भी नहीं है। स्पष्टतः मान ने जो नाम लिए, वैसे कोई देश दुनिया में नहीं हैं। चूंकि उन्होंने ये टिप्पणी प्रधानमंत्री की पांच देशों—ब्राजील, घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, अर्जेंटीना और नामीबिया— की यात्रा के बाद की, तो लाजिमी है उसे इसी संदर्भ में देखा जाएगा।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने मान की टिप्पणियों को “गैर-जिम्मेदाराना और अफसोसनाक” बताया। कहा कि यह एक राज्य के उच्च पदाधिकारी को ऐसी भाषा बोलना शोभा नहीं देता। बेशक, मान को उन देशों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, जहां मोदी गए। किसी देश का रसूख भले उसके आकार और उसकी आर्थिक- सैनिक शक्ति से बनता हो, मगर हर मुल्क संप्रभु है। इस रूप में विश्व में उसका समान महत्त्व है। भले किसी देश में दस हजार लोग ही रहते हों, मगर उन व्यक्तियों की गरिमा और उनके देश का सम्मान किसी बड़ी आबादी वाले देश या वहां के बाशिंदों से कम नहीं माना जा सकता। इस लिहाज से मान के बोलने के अंदाज की बेशक आलोचना होनी चाहिए।
मगर इस अंदाज के कारण मान ने जो सवाल उठाए, वे महत्त्वहीन नहीं माने जाएंगे। यह प्रश्न उचित है कि मोदी की अनवरत विदेश यात्राओं से भारत को क्या हासिल होता है? किस देश में कितने साल बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री गया, वहां का कौन-सम्मान उसे मिला, या वहां किस उद्योगपति को कौन-सा ठेका मिल गया, यह देश की विदेश नीति की कामयाबी को मापने का पैमाना नहीं हो सकता। पैमाना रणनीतिक, सामरिक एवं भू-राजनीतिक क्षेत्र में देश को होने वाले लाभ हैं। ऑपरेशन सिंदूर के समय जो तजुर्बा हुआ, उससे साफ है कि ऐसे लाभ भारत को प्राप्त नहीं हुए हैं। इसलिए भगवंत मान के सवाल निराधार नहीं हैं।